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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में ऐसे करें पूजा, जानें पूजन विधि और मंत्र

मोनिका वर्मा 

भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. हिंदू धर्म में जन्माष्टमी का पर्व खास त्योहारों में से एक है। जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण जयंती और गोकुलाष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त व्रत रखकर श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं और भगवान कृष्ण के बाल गोपाल या लड्डू गोपाल रूप में पूजा करते हैं।

इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आज यानी शुक्रवार को मनाई जा रही है। कुछ हिस्सों में गुरुवार, 18 अगस्त को भी जन्माष्टमी मनाई गई। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रात्रि में माता देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। वह देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे। जन्माष्टमी के दिन बाल श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाया जाता है और विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा आरती के साथ समाप्त होती है, जो महत्वपूर्ण है।

जन्माष्टमी की पूजा और भोग :

भगवान कृष्ण को वस्त्र, आभूषण, तिलक, फूल, माला आदि से सजाएं। फिर उनकी पूजा करें और भोग लगाएं फिर बाद में आरती करें। आरती के लिए घी के दीपक का प्रयोग करें। इस दौरान घंटी और शंख बजाते रहें। आरती पूरी होने के बाद दीपक को घर में हर जगह ले जाएं ताकि घर के अंदर की नकारात्मकता दूर हो जाए। यूं तो केशव भक्त की भक्ति से ही तृप्त हो जाते हैं। लेकिन जब बात कृष्ण जन्माष्टमी की हो तो घर घर में विशेष पकवान बनाकर लड्डू गोपाल को भोग लगाए जाते हैं। मान्यता है कि भगवान को चाहे 56 भोग का प्रसाद लगा दें लेकिन धनिया पंजीरी और पंचामृत के बगैर भोग की थाली अधूरी ही रहती है।

श्रीकृष्ण का आवाहन, पूजा विधि और मंत्र :

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा-विधि और मंत्र.शुद्धिकरण मंत्र ‘ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा, यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः’ इस मंत्र को पढ़ते हुए जल से खुद को और पूजन सामग्री को शुद्ध करें।

सर्व प्रथम श्रीकृष्ण का ध्यान कर  ‘वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्, देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्’ को बोलते हुए भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करें। फिर हाथ में जल, अक्षत, फूल लेकर पूजा का संकल्प करें. संकल्प लेने के क्रम में ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं महं करिष्ये’ मंत्र को बोलें।

जन्माष्टी पर जो भक्त श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करते हैं, उन्हें पहले हाथ में जौ-तिल लेकर भगवान श्रीकृष्ण का आवाहन करना चाहिए। भगवान के आवाहन के लिए ‘अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्, स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्’ इस मंत्र का उच्चारण करें. फिर जौ और तिल को प्रतिमा पर छिड़क दें। इसके बाद रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर इस मंत्र को बोलते हुए अर्घा में जल लेकर आसन पर छिड़कें। तत्पश्चात अर्घा में जल लेकर और उसमें गंध मिलाकर ‘सर्वतीर्थसमायुक्तं सुगन्धं निर्मलं जलम्, आचम्यतां मया दत्तं गृहत्वा परमेश्वर’ इस मंत्र के बोलते हुए आचमन करें। इसके बाद अर्घा में जल लेकर ‘अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह, करुणां करु मे देव गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते’ इस मंत्र को बोलते हुए भगवान को अर्घ्य दें। फिर अर्घा में गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद मिलाकर भगवान ‘पंचामृतं मयाआनीतं पयोदधि घृतं मधु, शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्’ इस मंत्र को बोलते हुए भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद हाथ में पीले वस्त्र लेकर ‘शीतवातोष्णसन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्, देहालअंगकरणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे. इस मंत्र को बोलते हुए श्री कृष्ण को वस्त्र अर्पित करें। फिर यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्, आयुष्मयग्यं प्रतिमुन्ज शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः मंत्र से भगवान को यज्ञोपवीत अर्पित करें। तत्पश्चात चन्दन लगाएं, श्रीखंड चंदनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्, विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्। भगवान को पुष्प अर्पित करें, माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो, मयाआहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्. पुष्प अर्पित करने के बाद भगवान को इसी मंत्र से फूल माला अर्पित करें। हाथ में दूर्वा लेकर मंत्र बोलें, दूर्वांकुरान् सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान्, आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण परमेश्वर। इदं नाना विधि नैवेद्यानि ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि, मंत्र के साथ  भगवान को नैवेद्य अर्पित करें। फिर भगवान को आचमन कराएं, इदं आचमनम् ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि।

पूजा के अंत में भगवान को पान सुपारी अर्पित करके प्रदक्षिणा करें और यह मंत्र बोलते हुए जाने अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा मांगे, यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च, तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे-पदे।

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है)

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