कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह द्वारा जारी निर्देश के क्रम में विश्वविद्यालय के शाकभाजी अनुभाग कल्याणपुर के सस्यविद डॉक्टर राजीव द्वारा भिंडी उत्पादक किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की गई है। उन्होंने बताया कि सब्जियों में भिंडी का स्वाद एवं औषधि दृष्टि से विशेष महत्व है। इसके हरे फलों को सब्जी के रूप में बड़े चाव के साथ खाया जाता है। भिंडी के हरे मुलायम फलों का प्रयोग सब्जी के अलावा सूप, फ्राई तथा अन्य रूप में भी किया जाता है। इसके तने व जड़ का प्रयोग गुण बनाते समय गन्ने के रस को साफ करने में भी होता है। इसके रेशा रस्सी बनाने में प्रयोग किया जाता है। कहीं-कहीं पर इसके बीजों से बने पाउडर का प्रयोग काफी की विकल्प के रूप में होता है। डॉक्टर राजीव ने बताया कि भिंडी विटामिन सी का एक उत्तम स्रोत है विटामिन सी जल में घुलनशील है जो शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है इसके अतिरिक्त भिंडी में प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम एवं लोहा इत्यादि तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भिंडी में कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है जो सेहत के लिए फायदेमंद होती है अल्सर एवं मधुमेह रोग में भिंडी का प्रयोग करना लाभप्रद पाया गया है। भिंडी में एंटी ऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो गंभीर बीमारियों के जोखिम को कम करता है।
डॉक्टर राजीव द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि भिंडी में एक प्रकार का प्रोटीन होता है जिसे लेक्टिन कहा जाता है जो मानव शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को रोकता है औसतन एक कप (100 ग्राम कच्ची भिंडी) में 33 कैलोरी ऊर्जा, 1.39 ग्राम प्रोटीन, 23 मिलीग्राम विटामिन सी, 82 मिलीग्राम कैल्शियम, 299 मिलीग्राम पोटैशियम, 57 ग्राम मैग्नीशियम, 0.62 मिलीग्राम लोहा पाए जाने के कारण इसे महत्वपूर्ण सब्जी मानते हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीष्मकालीन भिंडी वर्तमान समय में लगभग डेढ़ से दो माह की हो गई है जिससे फलों की तोड़ाई का कार्य भी चल रहा है। जब पौधों में फलियां नरम खाने योग्य हो तो उन्हें तोड़ लेना चाहिए। पौधे पर सभी फल एक साथ तैयार नहीं होते हैं इसलिए फलियों की हर दूसरे तीसरे दिन तोड़ाई करते रहना चाहिए। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए भिंडी की खड़ी फसल में नत्रजन एवं सूछम पोषक तत्व युक्त उर्वरक का प्रयोग करें।
डॉ राजीव ने बताया कि भिंडी फसल में सफेद मक्खी तथा हरा फुदका जैसे प्रमुख हानिकारक कीटों का प्रकोप होता है जिसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड (3 मिलीलीटर मात्रा प्रति 10 लीटर पानी) या डाईमेथोयत (1 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी) का दो-तीन बार छिड़काव करना चाहिए तथा फली बेधक कीट का प्रकोप होने पर ट्राईकोग्रामा नामक परजीवी के द्वारा जैविक विधि से नियंत्रण करें पीला मोजेक रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें। पाउडरी मिलडयू रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2 ग्राम कैराथेन या सल्फैक्स प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिए।