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ससुर खदेरी नदी ही असली ‘सरस्वती’ अब यही नाम पुकारा जाए: जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षाजनंद देव तीर्थ

  • माघ मेला में छोटी नदियाँ- ताल तलैया बचाओ अभियान का सम्मेलन
  • जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षाजानंद देवतीर्थ के सानिध्य में सन्तों, समाज का फैसला
  • 12 मार्च को गांधी जी की दांडी यात्रा की याद में होगी नदी यात्रा
  • अपनी नदी के साथ सेल्फी लेंगे और नदी के लिए करेंगे संघर्ष

प्रयागराज। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के तट पर यमुना में आकर मिलने वाली छोटी नदी ससुर खदेरी ही ‘सरस्वती’ है। हजारों साल में इस नदी का नाम बोलचाल की भाषा में बिगड़ कर ससुर खदेरी हो गया। अब इसे फिर से सरस्वती के नाम से पुकारा जाएगा। यह फैसला जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षाजनंद देव तीर्थ के सानिध्य में हुई ससुर खदेरी नदी बचाओ अभियान की कल बुधवार को हुई बैठक में साधु- सन्त और समाज के प्रबुध्द लोगों ने सर्व सम्मति से तय किया। यह भी तय किया गया कि सरकारी दस्तावेजों में भी इस नदी का नाम ठीक करके सरस्वती ही दर्ज किया जाए। ऐसा इसलिए जरूरी है कि त्रिवेणी में आकर मिलने वाली इस नदी का मान सम्मान बहाल हो और इसे बचाया भी जा सके। माघ मेला क्षेत्र में त्रिवेणी मार्ग स्थित जगद् गुरु अधोक्षाजनंद देव तीर्थ के शिविर में आयोजित सम्मेलन में यह विचार सामने आए। छोटी नदियाँ बचाओ अभियान के संयोजक ब्रजेंद्र प्रताप सिंह ने यह प्रस्ताव और विचार रखे कि ससुर खदेरी नदी का ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्व है।

स्वामी विवेकानंद के साहित्य में महर्षि अनि के हवाले से कहा गया है कि जहाँ पर समृद्ध इलाके थे; वहीं की नदियों को महर्षि अनि ने हजारों साल पहले ‘सरस्वती’ नाम दिया था। जिस दौर में इस नदी का नाम करण हुआ यहाँ राजा हर्ष वर्धन का शासन था। फतेहपुर से निकलने वाली इस नदी ने भौगोलिक कारणों से दो धाराओं में बहना शुरू कर दिया था। इसीलिए यह ससुर खदेरी नम्बर एक और दो के नाम से पहचानी जा रही है। यह पहले एक ही धारा थी जो प्रयाग में यमुना में आकर मिलती है। वैज्ञानिक ढंग से हुई हाल की जांच में यह तथ्य सामने आए हैं कि इसी नदी के इर्द गिर्द हजारों साल पुराने ‘वाटर चैनल’ पता लगे हैं। इसलिए मानवता के हित में जब नदियाँ मर रही हों तो उन्हें आस्था से जोड़कर बचाने का यह रामबान तरीका है कि माँ और मौसी को एक समान सम्मान दिया जाए। इस पर जगद्गुरु अधोक्षाजानन्द देवतीर्थ, श्री कामद गिरी कामता नाथ मन्दिर ट्रस्ट के महंत मदन गोपाल दास,  गोरख नाथ मन्दिर के पुरोहित रामानुज वेदाचार्य, राज्य सरकार के सर्वोच्च शिक्षा सम्मान ‘सरस्वती सम्मान’ के विजेता डॉ. एके वर्मा, इलाहाबाद विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर और मानव विज्ञान के ज्ञाता डा. राहुल पटेल, प्रधानाचार्य डा. मनि द्विवेदी, शासकीय आधी वक्ता लेखराज सिंह, इंजीनियर संजय शेखर पांडे, समाजिक कार्यकर्ता जफर सिपाही, डाॅ दीप माला पटेल, डाॅ सुग्रेव सिंह,  शिक्षिका पूनम सिंह,  ससुर खदेरी के निकट रहने वाले और शोधर्थि प्रभाकर सिंह, दिनेश तिवारी, दिनेश शुक्ल, रवीना, फिल्म अभिनेता और लेखक अजय त्रिपाठी, एडवोकेट  इमरान खां, एडवोकेट रितेश श्रीवास्तव, गरिमा मिश्रा, विनय  सिंह, मोनिका आर्या समेत ससुर खदेरी नदी के कार्यकर्ता ओं ने एक स्वर से कहा कि इसे सरस्वती ही पुकारेंगे। जगद्गुरु अधोक्षजानन्द देव तीर्थ ने कहा कि सन्तों को सम्यक दृष्टि रखनी चाहिए। प्रकृति की रक्षा के लिए देश काल के मुताबिक फैसले करने चाहिए। सत्ता का धर्म है कि वो सन्त और समाज की आवाज का आदर करे और उसी अनुरूप फैसले करे। इस पर अभियान के संयोजक ब्रजेंद्र प्रताप सिंह ने उन्हें आश्वस्त किया कि जल्द भी प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ से इस विषय पर मिलकर चर्चा की जाएगी।

इसके पहले कानपुर के निवासी फिल्म अभिनेता अजय त्रिपाठी की पुस्तक ‘ विकास के मायने’  के कवर पेज का विमोचन किया गया। बेसिक स्कूलों में जल कथा कहने वाली कौशांबी के रसूलाबाद स्कूल की विज्ञान शिक्षिका पूनम सिंह का सन्तों ने सारस्वत सम्मान किया. यह तय किया गया कि अभियान की तरफ से जल कथा का प्रकाशन किया जाएगा। इस मौके पर छोटी नदियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं रिसर्च स्कालर प्रभाकर सिंह, पत्रकार दिनेश शुक्ला, रवि राठौर, फिल्म मेकर नितिन कुशवाह, रवीना दत्त को जल संरक्षण के लिए सम्मानित किया गया।

12 मार्च को नदी यात्रा 
छोटी नदी बचाओ अभियान के इस सम्मेलन में तय हुआ कि महात्मा गांधी की दांडी यात्रा की याद में नदी रक्षा का संकल्प दोहराया जाएगा। नदी यात्रा के लिए ससुर खदेरी, पांडु नदी, वरुणा नदी समेत अन्य छोटी नदियों के तट पर स्थानीय लोग निकलेंगें और नदी के लिए एक पौधा लगाएंगे। एक तालाब में वर्षा जल संचित करने का यत्न करेंगे, पानी का सदुपयोग शुरू करेंगे।

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