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कद्दू वर्गीय फसलों को उगाने के लिए सी एस ए विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए जारी की एडवाइजरी

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह द्वारा जारी निर्देश के क्रम में गुरुवार को विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अधिष्ठाता कृषि संकाय डॉ. धर्मराज सिंह ने कद्दू वर्गीय फसलें उगाने वाले किसान के लिए एडवाइजरी जारी कर कहा है। कि कद्दू वर्गीय फसलों में लौकी, कद्दू, खीरा, ककड़ी, खरबूज एवं तरबूज आता है इन फसलों में अप्रैल के महीने में लाल भृंग कीट (लाल कीट) बहुतायत से आता है जो पतियों की हरितमा (हरा भाग) समाप्त कर पत्तियों को जाली दार बना देता है। यह कीट शुरू की अवस्था में कभी-कभी पूरी फसल को नष्ट कर देता है। जिससे किसान भाइयों को आर्थिक क्षति होती है। डॉ सिंह ने बताया कि प्रौढ़ कीट प्यूपा से निकलने के बाद पीला रंग का होता है तथा बाद में लाल रंग में बदल जाता है। इस कीट का संपूर्ण जीवन काल 30 से 60 दिन का होता है।

डॉक्टर धर्मराज सिंह ने कहा कि इस कीट से बचाव के लिए फसल बुवाई के पूर्व खेत में गहरी जुताई कर देनी चाहिए। जिससे भूमि की ऊपरी सतह पर आकर कीट के अंडे नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस कीट का प्रकोप कद्दू वर्गीय फसलों में अधिक होता है। अप्रैल के महीने में खड़ी फसल की जड़ों के पास गुड़ाई करने से अंडे नष्ट हो जाते हैं जिससे फसल को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस समय यदि कीट पत्तियों को खा रहे हो तो राख में मिट्टी का तेल मिलाकर पौधों पर बुरकाव करें तो पत्तियों को कीड़े नहीं खाते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि यदि लाल कीट का प्रकोप फसलों पर ज्यादा हो तो मेलाथियान कीटनाशक 50 ई.सी. की 1.25 लीटर मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। इसके साथ ही ध्यान रहे कि छिड़काव के 1 सप्ताह बाद ही फलों की तुड़ाई जाए अन्यथा दवा के अवशेष फलों में रह जाते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके साथ ही डॉक्टर धर्मराज सिंह ने किसान को सुझाव दिया है कि इस समय जो भी खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज की फसलें खेतों में खड़ी हैं उनमें ज्यादा विषाक्त वाली जहरीली दवाओं का प्रयोग न करें। इनके प्रयोग से दुश्मन कीट के साथ ही मित्र कीट भी मर जाते हैं तथा वातावरण भी प्रदूषित होता है। इसके लिए जरूरी है कि किसान मिथाइल यूजीनाल ट्रैप का प्रयोग करें। यह ट्रैप सुरक्षित एवं इको फ्रेंडली है।

डॉ. सिंह ने कहा कि हमेशा किसान वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों की सलाह से जैविक एवं सस्य विधियों का प्रयोग कर शुद्ध फसलों का उत्पादन करें। विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉक्टर खलील खान ने कृषकों को सलाह दी है कि कोविड-19 के दृष्टिगत खेती-बाड़ी के कार्य करते समय हमेशा मुंह में मास्क लगाएं तथा आपस में दूरी मेंटेन रखते हुए कृषि कार्य संपादित करें।

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