कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉक्टर उमाकांत त्रिपाठी ने धान की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए पादप रोगों से बचाव हेतु समसामयिक सुझाव दिए हैं। उन्होंने कहा कि यदि धान की खेती में समय रहते ध्यान न दिया जाए तो आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। डॉक्टर त्रिपाठी ने कहा कि बीमारी का उपचार बचाव, प्रतिरोधक क्षमता, साफ सफाई एवं टीकाकरण इत्यादि पर निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि मुख्यत: किसान धान की नर्सरी डालकर रोपाई करते हैं या फिर सीधी धान की बुवाई करते हैं। इन दोनों तरह की खेती में बीज उपचार, भूमि शोधन एवं धान की खड़ी फसल में दवाइयों का छिड़काव बहुत आवश्यक है जिससे लगभग 15 से 20% आय बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि धान में प्रमुख रोग सफेद रोग (नर्सरी में), जीवाणु झुलसा, भूरा धब्बा एवं खैरा रोग प्रमुखता से लगते हैं। धान की फसल में जड़ एवं तना गलन की समस्या के रोकथाम हेतु ट्राइकोडरमा विरिडी नामक जैविक फफूंदी नाशक लाभप्रद पाया गया है। ट्राइकोडरमा विरिडी से बीजों में अंकुरण अच्छा होकर फसलें फफूंद जनित रोगों से मुक्त रहती हैं।
डॉक्टर उमाकांत त्रिपाठी ने बताया कि धान की नर्सरी डालने की पूर्व धान को जीवाणु झुलसा रोग से बचाव हेतु 4 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन प्रति 25 किलोग्राम बीज को पानी में रात भर रखें तथा सुबह छाया में सुखाकर खेत में नर्सरी डाल देते हैं। खैरा रोग की रोकथाम के लिए धान की नर्सरी में बुवाई से 10 से 14 दिन बाद 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 20 किलोग्राम यूरिया 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने धान की फसल को सफेद रोग से बचाव हेतु 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का छिड़काव करने के लिए कहा तथा अन्य रोगों हेतु 2 किलोग्राम जिंक मैग्नीज कार्बामेट व प्रॉपिकोनाजोल 500 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। तथा धान की पौध रोपाई के समय 5 ग्राम ट्राइकोडरमा विरिडी जैविक फफूंदी नाशक को प्रति लीटर पानी में घोलकर उसमें पौधों को डुबोकर रोपाई करने के लिए बताया इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी कहा कि बुवाई /रोपाई के पूर्व 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडरमा विरिडी तथा 60 किलोग्राम गोबर की खाद में हल्की नमी के साथ 3 से 5 दिन तक छाया में रखकर प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाना चाहिए।
डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि धान की फसल में रोगों के लक्षण दिखाई देने पर रसायनों/ जैविक फफूंदी नासको का तुरंत छिड़काव करें। उन्होंने यह भी कहा कि यदि रोग पूर्णतया समाप्त न हो तो 7 से 10 दिन के अंतराल पर पुन: छिड़काव करें।