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कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के खेतों का किया दौरा, भिंडी फसल प्रबंधन पर दी अहम जानकारियां

कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर के कृषि वैज्ञानिकों ने गुरुवार कई गांवों के किसानों के खेतों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने भिंडी फसल के प्रबंधन पर किसानों को जानकारियां दी। इस दौरान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने बताया कि भिंडी विटामिन सी का एक उत्तम स्रोत है। विटामिन सी जल में घुलनशील है जो शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त भिंडी में प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम एवं लोहा इत्यादि तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भिंडी में कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है। जो सेहत के लिए फायदेमंद होती है। उन्होंने बताया कि अल्सर एवं मधुमेह रोग में भिंडी का प्रयोग करना लाभप्रद पाया गया है। भिंडी में एंटी ऑक्सीडेंट भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। जो गंभीर बीमारियों के जोखिम को कम करता है। 

डॉक्टर खान द्वारा यह भी बताया गया कि भिंडी में एक प्रकार का प्रोटीन होता है जिसे लेक्टिन कहा जाता है। जो मानव शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को रोकता है औसतन एक  कप (100 ग्राम कच्ची भिंडी) में 33 कैलोरी ऊर्जा, 1.39 ग्राम प्रोटीन, 23 मिलीग्राम विटामिन सी, 82 मिलीग्राम कैल्शियम, 299 मिलीग्राम पोटेशियम, 57 ग्राम मैग्नीशियम, 0.62 मिलीग्राम लोहा पाए जाने के कारण इसे महत्वपूर्ण सब्जी मानते हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीष्मकालीन भिंडी वर्तमान समय में लगभग डेढ़ से दो माह की हो गई है। जिससे फलों की तुड़ाई का कार्य भी चल रहा है। जब पौधों में फलियां नरम खाने योग्य हो तो उन्हें तोड़ लेना चाहिए। पौधे पर सभी फल एक साथ तैयार नहीं होते हैं इसलिए फलियों की हर दूसरे तीसरे दिन तोड़ाई करते रहना चाहिए। 

मृदा वैज्ञानिक वैज्ञानिक डॉ. शशिकांत ने बताया कि अधिक उपज प्राप्त करने के लिए भिंडी की खड़ी फसल में नत्रजन एवं सूछम पोषक तत्व युक्त उर्वरक का प्रयोग करें। उन्होंने बताया कि भिंडी फसल में सफेद मक्खी तथा हरा फुदका जैसे प्रमुख हानिकारक कीटों का प्रकोप होता है जिसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड (3 मिलीलीटर मात्रा प्रति 10 लीटर पानी ) या डाईमेथोएट (1 ग्राम मात्रा 1 लीटर पानी) का दो-तीन बार छिड़काव करना चाहिए तथा फली बेधक कीट का प्रकोप होने पर ट्राईकोग्रामा नामक परजीवी के द्वारा जैविक विधि से नियंत्रण करें। पीला मोजेक रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें। पाउडरी मिलडायू रोग के लक्षण दिखाई देने पर 2 ग्राम कैराथेन या सल्फैक्स प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिए। इस अवसर पर ग्राम कुंदनपुर के बृजेश प्रगतिशील किसान बृजेश सिंह एवं राजेश सिंह सहित अन्य  किसान उपस्थित रहे।

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