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सम्मिलित तुझमे हो गई !

ज्योति सिंह

अर्धांगनी बन तुम्हारी, मैं संगिनी हो गई 

साथ होकर मैं तुम्हारे, सम्मिलित तुझमे हो गई।

बना सागर तुझे, मैं खुद नदिया बन गई 

छोड़ पर्वत जंगल, तुझसे आकर मिल गई

भुला अपने गुण-अवगुण, तुम जैसी मैं हो गई 

साथ होकर मैं तुम्हारे, सम्मिलित तुझमे हो गई।

लुटा प्रेम सारा तुझपे, मैं विरहन हो गई 

प्रतिदिन घटती चाँद सी, मैं अमावस हो गई  

बना पूर्णिमा तुमको, मैं भी उजियारी हो गई   

साथ होकर मैं तुम्हारे, सम्मिलित तुझमे हो गई। 

सौंप कर सर्वस्व तुमको, खुद खाली मैं हो गई  

मिटा अस्तित्व स्वयं का, शून्य मैं हो गई  

रख कर आगे तुमको, मैं पीछे हो गई  

बढ़ा कर मान तुम्हारा , मैं भी तो ऊंची उठ गई 

साथ होकर मैं तुम्हारे, सम्मिलित तुझमे हो गई।

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