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24 मई 1956 को मिली थी वाराणसी नाम को आधिकारिक मान्यता

वाराणसी। पौराणिक नगरी काशी का दूसरा नाम बनारस है तो तीसरा प्रचलित नाम वाराणसी। इसका वर्तमान स्वरूप भले ही प्राचीनता संग कुछ आधुनिकता लिए हो मगर पुरा कथाएं इसकी भव्यता की कहानी स्वयं कहती हैं। स्कंद पुराण के काशी खंड में नगर की महिमा 15 हजार श्लोकों में कही गई है। मत्स्य पुराण में भगवान शिव वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता। प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन क्षेत्रे मम प्रिये।। अर्थात हे प्रिये, सिद्ध गंधर्वों से सेवित वाराणसी में जहां पुण्य नदी त्रिपथगा गंगा बहती है वह क्षेत्र मुझे प्रिय है। यह विश्व के प्राचीन नगरों में से एक है। पुराणों के अनुसार मनु से 11 वीं पीढ़ी के राजा काश के नाम पर काशी बसी। लेकिन वाराणसी नाम को आधिकारिक रूप मान्यता प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद ने 24 मई 1956 को आधिकारिक मान्यता प्रदान की थी। 1965 में प्रकाशित वाराणसी गजेटियर के दसवें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी किए जाने की तिथि 24 मई 1956 अंकित है। यह महज संयोग है कि उक्त तिथि को भारतीय पंचांग में दर्ज तिथि के अनुसार वैशाख पूर्णिमा और चंद्रग्रहण का योग था। 

एक मत के अनुसार अथर्ववेद में वरणावती नदी का जिक्र आया है जो आधुनिक काल में वरुणा का पर्याय माना जाता है। वहीं अस्सी नदी को पुराणों में असिसंभेद तीर्थ कहा गया है। अग्निपुराण में असि नदी को नासी का भी नाम दिया गया है।

पद्मपुराण में भी दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी का जिक्र है, मत्स्यपुराण में वाराणसी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि- वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता। प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन्‌ क्षेत्रे मम प्रिये। इसके अतिरिक्त भी विविध धर्म ग्रंथों में वाराणसी, काशी और बनारस सहित यहां के पुराने नामों के दस्तावेज मौजूद हैं। 

काशी के इतिहास पर शोध कर रहे नित्यानंद राय ने बताया कि पुराणों में वर्णित है कि काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग पांच हजार साल पूर्व की थी। इसे कासिनगर और कासिपुर के नाम से भी जाना जाता था। सम्राट अशोक के समय में इसकी राजधानी का नाम पोतलि था। जातक कथाओं के अनुसार ही इसका एक नाम रामनगर भी है। एक ऐसा शहर जहां सब कुछ सुंदर और आनंददायक है। पतंजलि के महाभाष्य अष्टाध्यायी के सूत्र पतंजलि में लिखा है वणिजो वाराणसी जित्वरीत्युपाचरन्ति… अर्थात ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में व्यापारी लोग वाराणसी को जित्वरी नाम से पुकारते थे। जित्वरी का अर्थ है जयनशीला अर्थात जहां पहुंचकर पूरी जय अर्थात व्यापार में पूरा लाभ हो। नित्यानंद राय ने बताया कि सबसे प्राचीन उपनिषद जाबालोपनिषद में काशी को अविमुक्त नगर कहा गया है। काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है और इसके बाद शतपथ में भी उल्लेख है।

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