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कानपुर विश्वविद्यालय : विश्व स्वास्थ्य दिवस पर हुआ स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम आयोजन

कानपुर नगर। विश्व स्वास्थ्य दिवस की पूर्व संध्या पर एक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम विश्वविद्यालय परिसर की राष्ट्रीय सेवा योजना पंचम इकाई द्वारा सीनेट हॉल में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन कुलपति प्रो0 विनय कुमार पाठक, विशिष्ट वक्ता, पूर्व विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कालेज, कानपुर प्रो0 किरन पाण्डे, विशिष्ट वक्ता, पूर्व विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी, एल.पी.एस. इंस्टीट्यूट आफ कार्डियोलॉजी, कानपुर प्रो0 आर.के. बंसल, कुलसचिव डॉ0 अनिल कुमार यादव, समन्वयक राष्ट्रीय सेवा योजना डॉ0 श्याम मिश्रा एवं कार्यक्रम अधिकारी एन.एस.एस. यूनिट-5 तथा कुलानुशासक डॉ0 प्रवीन कटियार द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।

इस अवसर पर कुलपति प्रो0 विनय कुमार पाठक ने कहा कि यदि व्यक्ति अनुशासित जीवन शैली अपनाता है तो वह सम्पूर्ण स्वस्थता की ओर बढ़ सकता है और उसमें बीमारियां होने की संभावनायें कम हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि सेवा भावना और दूसरों की सेवा करने से मनुष्य को आंतरिक शांति मिलती है और उसका चित्त प्रसन्न रहता है। जब चित्त प्रसन्न रहता है तो शरीर भी प्रसन्न रहता है। उन्होंने कहा कि कुछ देश अब प्रसन्नता के इन्डेक्स का सर्वे कराने लगे हैं क्योंकि प्रसन्नता का स्वस्थता से सीधा संबंध है। उन्होंने विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ साथ सेवा कार्य करने के लिये प्रेरित किया तथा उन्हें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना के अनुसार कार्य करने को कहा।

विशिष्ट वक्ता पूर्व विभागाध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, जी.एस.वी.एम. मेडिकल कालेज, कानपुर प्रो0 किरन पाण्डे ने किशोरावक्ता में एनीमिया (रक्ताल्पता) विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि एनीमिया दुनिया भर में सबसे अधिक पाया जाने वाला पोषण संबंधी विकार है जो कि 1.3 अरब व्यक्तियों यानि विश्व की 24% आबादी को प्रभावित करता है। भारत वर्ष में 64 मिलियन किशोरियों में एनीमिया पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में एनीमिया की व्यापकता- 56.3% है।

उन्होंने बताया कि किशोरियों में रक्तस्राव के कारण आइरन की आवश्यकता बढ़ जाती है। एनीमिया के कारणों के संबंध में चर्चा करते हुये उन्होंने बताया कि एनीमिया के कारण में कुपोषण, Mal absorption व लीवर एवं किडनी की क्रोनिक बीमारियां है। उन्होंने बताया कि थकान लगना, त्वचा का पीलापन, बालों का गिरना, भूख न लगना, पाइका एवं चिड़चिड़ापन एनीमिया के मुख्य लक्षण हैं। एनीमिया के कारण किशोरियों में शरीर का विकास रूक जाता है, पड़ाई पर प्रभाव पड़ता है, कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है तथा विभिन्न प्रकार के संक्रमण होने का खतरा रहता है।

एनमिया का मैनेजमेंट दो प्रकार का है Preventive Management एवं Theraputic Management च्त Preventive Management में उचित पोषण देना एवं Iron Supplement देना आता है। Theraputic Management में खून बढ़ाने के लिये दवायें लेना एवं मलेरिया एवं अन्य परजीवियों का नियंत्रण करना आता है। एनीमिया से बचने के लिये पोषण के अन्तर्गत हरी पत्तेदार सब्जियां, फल (लीची, अंजीर, ड्राइड फ्रूट इत्यादि), बीन्स एवं लैग्यूमस लेना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि Vitamin ‘C’ शरीर में Iron के अवशोषण को अधिक करता है अतः Vitamin ‘C’ के अधिकता वाली चीजों (आंवला, नीबू, टमाटर) इत्यादि लेना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि चाय व कॉफी में टेनिन और फाइटेट्स होते हैं जो कि Iron के Absorption को रोकते हैं इसलिये भोजन के एक घंटे पहले या बाद में चाय/कॉफी का सेवन न करें।

विशिष्ट वक्ता प्रो0 आर.के. बंसल, पूर्व विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी, एल.पी.एस. इंस्टीट्यूट आफ कार्डियोलॉजी, कानपुर, ने हदय रोगों से होने वाली बीमारियों के संबंध में बताया कि भारतीय चिकित्सा पद्धति अर्थात आयुर्वेद में निहित है कि हर व्यक्ति स्वस्थ एवं शतायु का हो सकता है बशर्ते वह प्रकृति के अनुरूप आचरण, खानपान एवं आध्यात्मिक सोच रखे।

हृदय रोगों के संबंध में उन्होंने बताया कि सबसे महत्वपूर्ण हृदय रोग वर्तमान मे कोरोनरी आर्टरीज के अवरूद्ध होने के कारण हैं।

पूर्व मे बच्चों में रूमैटिक हृदय रोग अधिक था, जिससे हृदय की वाल्व डैमेज हो जाती थी लेकिन अब यह रोग कम हो गया हैं।
जन्म से होने वाली बीमारीयों में हृदय मे जन्म से ही डिफेक्ट रहता हैं जिससे बच्चा नीला पैदा होता हैं या उसकी बहुत अधिक पसली चलती हैं (हार्ट फेल्योर के कारण)।
इसके अतिरिक्त कुछ रोग वर्तमान मे अच्छे डायग्नॉस्टिक तरीकों के कारण अब पहचाने जा रहें है, इनको कार्डियोमायोपैथी कहते हैं।
कुछ रोग यघपि कम होते हैं लेकिन हृदय को प्रभावित करते हैं, जैसे मिक्जोमा तथा अन्ए हार्ट के टयूमर।
हृदय की गति से सम्बन्धित बीमारियां भी होती हैं। हृदय की गति अगर बहुत अधिक बढ़ जाये अथवा बहुत कम हो जाये तो मरीज को अत्यधिक तकलीफ होने लगती है, जिसमें बेहोशी भी सम्मिलित हैं और पेसमेकर भी लगाना पड़ता है।
हृदय की झिल्ली जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं उसमें सूजन होना या पानी आ जाना या सिकुड़ जाना ये पैरीकार्डियल डिजीजिएस कहलाती हैं।

हृदय रोग मे सबसे महत्वपूर्ण वर्तमान मे कोरोनरी आर्टरी डिजीज अर्थात हृदय की धमनियों का अचानक अथवा धीरे-धीरे अवरूद्ध होना है।

उन्होंने हृदय रोगों के बचाव के तरीके बतायें, मोटापा कम करना व वजन पर नियंत्रण रखना। हरी सब्जियों का अधिक सेवन करना। 45 मिनट से 1 घंटे तक पैदल चलना। उच्च रक्त चाप अगर हो तो उसका उचित नियंत्रण। मधुमेह अगर हो उसका उचित नियंत्रण।मानसिक तनाव से बचाव रखना। हैरीडेटरी एवं जैनेटिक कारणो का पता करके उचित उपचार करवाना। रक्त मे यदि वसा अधिक हो तो उनके लिये डॉक्टरी सलाह के अनुसार नियंत्रण रखना। धूम्रपान से बचाव करना।

यदि हम सब विस्तृत रूप से हृदय रोगों के कारणों पर नियंत्रण रखें तो तथ्य बताते हैं कि 95 प्रतिशत हार्ट अटैक को रोका जा सकता है।

धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ0 अनिल कुमार यादव ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना के उप-समन्वयक डॉ0 प्रवीन कटियार ने बताया कि इस बार विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम हैः My Health, My Right (मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार)। इस थीम के माध्यम से सभी को अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, शिक्षा, सूचना, स्वच्छ जल, स्वच्छ वायु, सुपोषण, अच्छे आवास, अच्छे वातावरण एवं कार्य स्थल के अच्छे वातावरण की उपलब्धता को सुनिश्चित करने की पहल की गयी है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के विश्वविद्यालय परिसर की इकाईयों के कार्यक्रम अधिकारी डॉ0 पंकज द्विवेदी, डॉ0 मानस उपाध्याय, डॉ0 स्नेह पांडे, डॉ0 पुष्पा ममोरिया आदि तथा विद्यार्थी एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक उपस्थित थे।

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