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प्रदेश में मसूर के निर्यात, मूंगफली एवं लहसुन के उत्पादन में कमी पर अध्ययन

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह ने बताया कि विगत वर्षों राजभवन के संज्ञान में आया कि प्रदेश के जनपद सीतापुर से पूर्व वर्षों में मसूर का निर्यात अरब देशों में बहुत होता था परंतु वर्तमान समय में मसूर के निर्यात में कमी आई है। उन्होंने बताया की अपर मुख्य सचिव कुलाधिपति/राज्यपाल उत्तर प्रदेश द्वारा विश्वविद्यालय से अपेक्षा की गई थी कि जनपद सीतापुर से अरब देशों में मसूर के निर्यात में कमी होने के कारणों की स्थिति से अवगत कराएं उक्त के क्रम में निदेशक शोध डॉ. एच. जी. प्रकाश की अध्यक्षता में डॉ. मनोज कटियार, डॉ. एस. के. विश्वकर्मा, डॉक्टर संजय सिंह, डॉ. पी. के. बिसेन, डॉक्टर एन.के. त्रिपाठी, डॉ. मनोज मिश्र, डॉक्टर संजीव सचान, डॉक्टर एमसी वर्मा एवं डॉक्टर हरीश चंद्र सिंह आदि वैज्ञानिकों द्वारा उक्त विषय पर जनपद सीतापुर में सर्वेक्षण किया गया। वैज्ञानिकों ने जनपद के कृषकों, निर्यातकों, नीति निर्धारकों एवं हितग्राहियों के साथ विभिन्न क्षेत्रों का सर्वेक्षण कर मसूर निर्यात को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन कर पाया कि जनपद के किसानों द्वारा उन्नतशील प्रजातियों का उपयोग न करना, मूल्य संवर्धन, ग्रेडिंग, प्रसंस्करण, अवसंरचना का अभाव, विपणन व्यवस्था का सुव्यवस्थित न होना है।

विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. खलील खान ने बताया कि इसी प्रकार से लहसुन के उत्पादन में मैनपुरी व एटा जनपद में लहसुन उत्पादन में कमी के कारकों का भी अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में यह पाया गया कि कृषकों में जागरूकता की कमी, उन्नतशील प्रजातियों का प्रयोग न करना, साथ ही मृदा का संघनित होना भी है मैनपुरी एटा में फार्मेसी/लघु उद्योग/ प्रसंस्करण इकाई/मूल्य संवर्धन इकाई न होना भी एक महत्वपूर्ण कारक है। जिसकी वजह से किसानों में लहसुन की खेती के प्रति रुचि न लेना। इसी प्रकार से जनपद मैनपुरी में मूंगफली के उत्पादन में कमी के कारणों का भी अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि किसान मूंगफली की जगह मक्का, उर्द, मूंग, बाजरा आदि की खेती कर रहे हैं साथ ही स्थानीय समस्याएं जैसे श्रमिकों की कमी व ग्रीष्मकालीन मूंगफली में कीट और रोगों द्वारा फसल को प्रभावित करना मुख्य हैं उक्त विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट को संकलित कर अपर मुख्य सचिव राज्यपाल/कुलाधिपति आनंदी बेन पटेल को प्रस्तुत की गई जिस पर कुलाधिपति द्वारा उक्त कार्य के अध्ययन हेतु विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह एवं उनकी वैज्ञानिक टीम की प्रशंसा की गई।

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