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आस्था: सैकड़ों वर्षों से यहां चमगादड़ करते आ रहे है माँ चौरा देवी की पूजा

मेहेर मधुर निगम/नीरज सचान

आपने बहुत से देवी देवताओं के मंदिर देखे होंगे, जिनमें तरह तरह के रूप में उनकी मूर्तियाँ होती है  पर क्या आप ने किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जो चमगादड़ों का मंदिर कहलाता हो ….जी हाँ, हम आपको बता रहे हैं ऐसे मंदिर के बारे में जहाँ हजारो की संख्या में चमगादड़ निवास करते हैं।  जहाँ लोग इन चमगादड़ों की पूजा कर इनसे अपने लिए वरदान मांगते है। 

यह है उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले का प्राचीन चौरा देवी मंदिर। दो नदियों, यमुना और बेतवा के बीच के इस स्थान पर कभी घना जंगल था।  करीब 150 साल पहले कुछ चरवाहों ने एक पीपल के पेड़ के तने से एक मूर्ति को खोजा था। पत्थर की यह  मूर्ति श्रद्धा का केंद्र बन गयी और लोग इसे चौरा देवी ने नाम से पुकारने लगे।  इसी घने जंगल में मूर्ति के आस पास हजारो चमगादड़ रहते थे। इनकी आवाज और लटकने का तरीका बेहद डरावना है।  मंदिरों की घंटियों के साथ इन  चमगादड़ों का अपना अलग महत्व है। मंदिर में माँ की आरती के समय में यह चमगादड़ हज़ारों की संख्या में घंटो की आवाज के साथ ही उड़ने लगते हैं और अपनी आवाज को निकालते हैं मंदिर की आरती के बाद ये प्रसाद खाकर वापस अपने पेड़ पर चले जाते है।

मंदिर में पूरी होती है हर मुराद 

इस प्राचीन मंदिर के बारे में किवदंती यह भी है कि यहां स्थित पेड़ों में चमगादड़ों का एक प्रधान चमगादड़ था, जो पहले मूर्ति की पूजा के लिए आया करता था और उसकी मृत्यु के बाद उसको दफन कर दिया गया। इसके बाद बहुतायत में चमगादड़ यहां निवास करने लगे।  कहते हैं कि जहाँ चमगादड़ो का वास होता है वहां वीरानी ही रहती है। ये अँधेरे में ठंडी गुफाओ में रहते हैं, पर यहाँ ऐसा नही है। आसमानी डर के नाम से पुकारे जाने वाले इन चमगादड़ों पर बनी बैटमैन नाम की तीन फिल्मे किसे याद नही है। मंदिर के श्रद्धालु इन्हें  माता के रक्षक मानते हैं और कुछ लोग इन्हें अच्छी आत्माएं भी मानते हैं। जो माँ की भक्ति में लीन हो कर माँ की पूजा करने के लिए ही आरती में शामिल होते हैं। कहा यह भी जाता है कि इस मंदिर में हर मुराद पूरी होती है, अगर माँ के दर्शन के बाद इन चमगादड़ों के भी दर्शन किये जाये। 

विज्ञान की मानें तो उल्टे लटकने वाले ये रात्रिचर डर तो पैदा करते हैं  पर विज्ञान के अनुसार ये पराश्रव्य (अ।ल्ट्रा सोनिक) तरंगो को उत्सर्जित करते है। ये राडार की तरह तरंगे पकड़ कर दुश्मनों या भोजन का पता लगा लेते हैं। ज्यादातर ठंडी जगहों पर या अँधेरी गुफाओ, खंडहरों पर रहने वाले इन चमगादड़ों की एक पेड़ पर हजारो की संख्या में मौजूदगी चौकाने वाली है और इन्होनें भोजन पाने के लिए ही अपने आप को इस तरह विकसित कर लिया है कि घंटों की धुन के साथ ही ये इस स्थान में पहुँच जाते हैं, वो भी दिन में और वो खुद इसे एक माँ के चमत्कार के रूप में देखते हैं। 

हंसानन्द महाराज ने किया था स्थापित

स्थानीय निवासी सुरेश चंद्र द्विवेदी के अनुसार पहले मां चौरा देवी की मूर्ति पीपल के पेड़ के अंदर थी।  उन्होंने बताया कि हंसानन्द जी महाराज हरिद्वार से यहां आकर चतुर्मास किया करते थे बात 1962 की होगी। जब महाराज जी ने लोगों से माँ की मूर्ति को पेड़ से बाहर निकालने के लिए कहा। परन्तु भयवश किसी ने भी पीपल को काट कर मूर्ति नहीं निकाली। फिर हंसानन्द महाराज ने खुद ही पीपल को काटकर मूर्ति बाहर निकाल कर एक चौरे पर स्थापित की। धीरे धीरे लोग यहां आने लगे और पूजा अर्चना करने लगे। स्थानीय निवासी गौरव के अनुसार जो भी यहां आकर मां से कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी होती है।

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