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होली के 8 दिन पहले से शुरू होता है होलाष्टक, जानिए होलाष्टक से जुड़े रोचक तथ्य, कुछ मायनो में बहुत लाभकारी है होलाष्टक

गरिमा शुक्ला
फाल्गुन मास का महीना हिन्दू पंचांग ही नही बल्कि सनातन संस्कृति के लिए भी बेहद पवित्र महीना माना जाता है। कहते हैं भगवान कृष्ण को भी ये माह अत्यंत प्रिय था। यही वजह है कि उनको स्वरूप मानकर वृंदावन और बरसाने एवं नन्दगाँव में जमकर होली उत्सव मनाते हैं। ज्योतिषचार्य वेद शास्त्री जी का कहना है कि होली के ठीक 8 दिन पहले होलाष्टक का भी अपना विशेष महत्व होता है। हालांकि ऐसा मानते हैं कि होलाष्टक शुरू होने के साथ ही साथ यहाँ शुभ कर्म भी वर्जित मने जाने लगते हैं।  शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है। होलाष्टक होली दहन से पहले के 8 दिनों को कहा जाता है।

कब लगेगा इस बार का होलाष्टक : इस बार 22 मार्च 2021 से 28 मार्च 2021 तक होलाष्टक रहेगा। इस वर्ष होलिका दहन 28 मार्च को किया जाएगा और इसके बाद अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाएगी।

शुभ कार्यों के लिए वर्जित : अपशगुन के कारण इसमें मांगलिक कार्यों और शुभ कार्यों को करना वर्जित माना जाता हैं होलाष्टक शुभ क्यों नहीं होता हैं इसके संबंध में दो पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जो भक्त प्रह्लाद और कामदेव से जुड़ी मानी जाती हैं। तो आज हम आपको इन्हीं कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं।


इस लिए माना जाता है अशुभ  

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, राजा हिरयकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को श्री विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए कई तरह की यातनाएं दी थी। भक्त प्रह्लाद को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक कई तरह की यातनाएं दी गई। उनको मारने का भी कई बार प्रयास किया गया। मगर श्री विष्णु ने हर बार उनके प्राणों को बचा लिया। वही आठवें दिन यानी की फाल्गुन पूर्णिमा की रात हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को अपने बेटे के साथ आग में बैठाने की योजना बनाई, जिससे वह जलकर मर जाए और विष्णु की भक्ति से मुक्ति मिले। उसके राज्य में कोई भगवान विष्णु का नाम न लें।

वही योजना के मुताबिक, होलिका भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई। होलिका ने अपने दिव्य वस्त्र पहन रखे थे जिससे वह आग से बच सकें। मगर विष्णु की ऐसी कृपा हुई कि प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर मर गई। इस वजह से हर साल होली से पहले रात को होलिका दहन होती हैं होलिका दहन से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता हैं यही वजह है कि इसदिन होली से शुरू हुए 8 दिन पहले के होलाष्टक को असुभ कहते हैं। 

 
क्या करना चाहिए  

होलाष्टक में पूजा-पाठ करने और भगवान का स्मरण भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि होलाष्टक में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। होलाष्टक के दौरान श्रीसूक्त व मंगल ऋण मोचन स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जिससे आर्थिक संकट समाप्त होकर कर्ज मुक्ति मिलती है।

क्या नही करना चाहिए

विवाह करना, वाहन खरीदना, घर खरीदना, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, व्यपार का शुभारम्भ कोई नया कार्य प्रारंभ करना एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।

इन देवताओं की पूजा का है महत्व

इस दौरान भगवान नृसिंह और हनुमानजी की पूजा का भी महत्व है। चुकी भगवान नारसिंह को विष्णुनक अवतार मानते हैं उन्होंने ने हिरणकश्यप का वध कर समाज को बुराईयों से निवृत किया था। इसलिए भगवान विष्णुनक इस अवतार का पूजन अनिष्ट को खत्म करने के लिये करते हैं। 

जानिए उपले बनाने की खास परपम्परा  

होलाष्टक के प्रारंभ होने वाले दिन एक स्थान पर दो डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें से एक डंडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डंडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करके के बाद इन डंडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है।

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